मंगलवार, 30 जुलाई 2019

दो भक्तों और भगवान की नोकझोंक।

आओ आप सबको हम एक भक्त और भगवान  की अनोखी नोक झोक की कहानी सुनाते है –


एक बार की बात है | एक अयोध्यावासी राम भक्त वृन्दावन घुमने के लिए आया | वहां उसकी एक कृष्ण भक्त से मुलाकात हुयी | वो कृष्ण भक्त राधे कृष्ण नाम जप रहा था | और वो अयोध्या वासी राम भक्त था , वो राम राम रट रहा था |  राम भक्त ने , तभी कृष्ण भक्त को छेड़ते हुए  कहा की तुम इस टेढ़े  भगवान का नाम क्यों जप रहे हो | ये तो बहुत टेढ़े है  | इनके तो सारे काम ही टेढ़े है | हमारे राम जी तो एक दम सीधे है और सच्चे है | तुम क्यों नहीं राम – राम जपते हो |
ये सब सुनकर कृष्ण भक्त को बहुत गुस्सा आ जाता है | और वो कृष्ण भक्त कहता है की नहीं ऐसा नहीं है ये तो बहुत सीधे और सच्चे है | ये तो सबके पालन हार है |
तभी राम भक्त कहता है कोन  कहता है की ये सीधे है | ये तो टेढ़े है |
तभी दोनों भक्तों में इसी  बात को लेकर नोक – झोक होने लगती है |
राम भक्त कहता है- की ये कहा से सीधे है | इनका नाम टेढ़ा , इनके काम टेढ़े सब कुछ टेढ़ा है टेढ़ा | अब तुम ही बताओ ये  नहाती हुयी गोपियों के वस्त्र चुरा लेते है , ये सबके घरों से माखन चुरा कर खाते है और अपनी भोली – भली माँ को अपने मुह में पूरा ब्रह्माण्ड दिखा देते है | अब तुम ही बताओ ये सब काम क्या सीधे व्यक्ति के होते है | तभी तो सब कहते है की ये बहुत ही टेढ़े भगवान् है |
ये शब्द सुनकर कृष्ण भक्त के पास कोई जवाब नहीं होता और वो अपने बांके बिहारी के मंदिर में जाकर बांके बिहारी के साथ क्रोध में बात करते हुये कहते है की है भगवान् ! तुमने तो सब जगह हमारी भी बेज्जती करा रखी है | सब तुम्हे टेढ़ा – टेढ़ा कहकर पुकारते है | तुमने कुछ अच्छा किया भी है | तुम सच में ही टेढ़े हो | मुझे आपसे बात नहीं करनी और मै ये सब त्यागकर अयोध्या जा रहा हूँ | और राम नाम जपूंगा और वही रहूँगा और उनकी सेवा करूंगा | राम जी तो बहुत ही सीधे और सच्चे है | ये लो अपनी डंडी , बांसुरी , जामा मुझे नहीं रहना आपके पास मै तो चला अयोध्या |
ये कहकर वो कृष्ण भक्त वहाँ से चला जाता है | तभी भगवन कृष्ण भी उनके पीछे – पीछे चल देते है | पर अपने भक्त को देख कर मुस्कुराते हुए मीठे स्वर में कहते है की तुम मुझे गलत समझ रहे हो | कृष्ण भगवान् उस भक्त को बहुत समझाने का प्रयास करते है और कहते है की ठीक है | मै आज से कोई टेढा काम नहीं करूँगा क्यूंकि तुम मेरे प्रिय और सच्चे भक्त हो  | लेकिन वो भक्त उनकी कोई बात नहीं सुनता और आगे चलता जाता है | श्री कृष्ण भी उनके पीछे – पीछे चलते जाते है |तभी कुछ दूर चलने के बाद वो कृष्ण भक्त थक जाता है |
तभी मार्ग में उन्हें एक मंदिर दिखाई पढता है | वो कृष्ण भक्त मंदिर में बैठ जाता है | कृष्ण भगवान् भी वही मंदिर मे  उसके साथ बैठ जाते है और विश्राम करते है | तभी कृष्ण भगवान् की निगाह मंदिर में जल रहे दिए पर पड़ती है वो दिया बुझने वाला था और उस दिए का घी ख़तम हो गया था |तभी भगवान् उस दिए के पास जाते है | दिए के पास रखे घी के डिब्बे से घी निकालने की कोशिश करते है | कृष्ण भक्त ये सब चुपचाप देख रहा था | कृष्ण भक्त देखता है की भगवान कृष्ण अपनी सीधी उंगली से घी निकालने की कोशिश कर  रहे है | पर घी निकल नहीं रहा है | ये सब देखकर कृष्ण भक्त को गुस्सा आता है और वो बोल पड़ता है की | हे भगवन ! आप  ये क्या कर रहे है आप को कोई सुध नहीं है सीधी ऊँगली से कभी कोई घी निकालता है क्या | आपको तो ये भी मालूम नहीं की घी हमेशा टेढ़ी ऊँगली से ही निकलता है |  जाने आप केसे इस संसार के पालनहार बनोगे  |
तभी ये सब सुनकर भगवान् अपने भक्त से मुस्कुराते हुए  कहते है की मै तो कब से तुम्हे ये ही बात समझाना चाहता हूँ की इस संसार में  इतने पाप बढ़ गये है की धरती पर इन पापों का विनाश करने के लिए मुझे टेढ़ा बनाना पड़ता है | इसीलिए सब मुझे टेढ़ा कहते है |
और मैंने घी को सीधी ऊँगली से इसलिए निकाला की मैंने तुमसे वादा किया था की अब मै कोई भी टेढ़ा काम नहीं करूँगा |ये सब मैंने अपने सच्चे भक्त के लिए किया है |
भगवान् कृष्ण की ये सब बातें सुनकर वो भक्त हैरान हो जाता है और मन ही मन अपनी भूल पर पछताता है | वो कृष्ण से छमा मांगता है और उसे सब समझ आ जाता है | तब वो फिर से अपने बांके बिहारी के मंदिर जाता है और राधे कृष्ण जपते हुए सच्चे मन से उनकी सेवा करता है |

शनिवार, 30 मार्च 2019

Bhartiya nav varsh

हमारा अपना भारतीय नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा! इस नव वर्ष विक्रम संवत 2076 की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। 6 अप्रैल 2019 को आइए हम सब मिलकर अपने नव वर्ष को शुभकामनाओं सहित हर्षोल्लास के साथ मनाए।

मंगलवार, 12 मार्च 2019

दत्तात्रेय के 24 गुरु

24 गुरुओं में कबूतर, पृथ्वी, सूर्य, पिंगला, वायु, मृग, समुद्र, पतंगा, हाथी, आकाश, जल, मधुमक्खी, मछली, बालक, कुरर पक्षी, अग्नि, चंद्रमा, कुमारी कन्या, सर्प, तीर (बाण) बनाने वाला, मकडी़, भृंगी, अजगर और भौंरा (भ्रमर) हैं। 
सूर्य – सूर्य से यह शिक्षा ग्रहण की है कि जैसे वे अपनी किरणों से पृथ्वी का जल खींचते और समय पर उसे बरसा देते हैं, वैसे ही योगी पुरुष इन्द्रियों के द्वारा समय विषयों का ग्रहण करता है और समय आने पर उनका त्याग—उनका दान भी कर देता है। किसी भी समय उसे इन्द्रिय के किसी भी विषय में आसक्ति नहीं होती ।

चन्द्रमा- हमारी आत्मा लाभ-हानि से परे है। वैसे ही जैसे चंद्रमा के घटने या बढ़ने से उसकी चमक और शीतलता नहीं बदलती, हमेशा एक जैसी रहती है, वैसे आत्मा भी किसी प्रकार के लाभ-हानि से बदलती नहीं है।
 

कबूतर- दत्त भगवान ने यह भी जाना कि जब कबूतर का जोड़ा जाल में फंसे अपने बच्चों को देखकर खुद भी जाल में जा फंसता है, तो इससे यह सबक लिया जा सकता है कि किसी से बहुत ज्यादा स्नेह दु:ख की वजह बनता है।

मृग- मृग अपनी मौज-मस्ती, उछल-कूद में इतना ज्यादा खो जाता है कि उसे अपने आसपास अन्य किसी हिंसक जानवर के होने का आभास ही नहीं होता है और वह मारा जाता है। इससे जीवन में यह सीखा जा सकता है कि हमें कभी भी मौज-मस्ती में ज्यादा लापरवाह नहीं होना चाहिए।


पतंगा- जैसे पतंगा आग की ओर आकर्षित होकर जल जाता है, उसी प्रकार रंग-रूप के आकर्षण और झूठे मोहजाल में हमें उलझना नहीं चाहिए। 
मधुमक्खी- जब मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती हैं और एक दिन छत्ते से शहद निकालने वाला आकर सारा शहद ले जाता है, तो हमें इस बात से यह सीखना चाहिए कि आवश्यकता से अधिक चीजों को एकत्र करके नहीं रखना चाहिए।

भौंरा- भगवान दत्तात्रेय ने भौंरे से सीखा कि जहां भी सार्थक बात सीखने को मिले, उसे तत्काल ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस प्रकार भौंरे अलग-अलग फूलों से पराग ले लेता है।

भृंगी कीड़ा- दत्तात्रेय ने इस कीड़े से सीखा कि अच्छी हो या बुरी, हम जहां जैसी सोच में अपना मन लगाएंगे, मन वैसा ही हो जाता है।

मकड़ी- दत्तात्रेय ने मकड़ी से सीखा कि भगवान भी मायाजाल रचते हैं और उसे मिटा देते हैं। ठीक वैसे ही जैसे एक मकड़ी स्वयं जाल बनाती है, उसमें विचरण करती है और अंत में पूरे जाल को खुद ही निगल लेती है। ठीक इसी तरह भगवान भी माया से सृष्टि की रचना करते हैं और अंत में उसे समेट लेते हैं।

सांप- भगवान दत्तात्रेय ने सांप से सीखा कि किसी भी संन्यासी को अकेले ही जीवन व्यतीत करना चाहिए। कभी भी एक ही स्थान पर न रुकते हुए जगह-जगह जाकर ज्ञान बांटते रहना चाहिए।

तीर बनाने वाला- दत्तात्रेय ने एक ऐसा तीर बनाने वाला देखा, जो तीर बनाने में इतना मग्न था कि उसके पास से राजा की सवारी निकल गई, पर उसका ध्यान भंग नहीं हुआ। अत: हमें अभ्यास और वैराग्य से मन को वश में करना चाहिए। 

 
कुमारी कन्या- भगवान दत्तात्रेय ने एक बार एक कुमारी कन्या देखी, जो धान कूट रही थी। धान कूटते समय उस कन्या की चूड़ियां आवाज कर रही थीं। बाहर मेहमान बैठे थे जिन्हें चूड़ियों की आवाज से परेशानी हो रही थी। तब उस कन्या ने चूड़ियों की आवाज बंद करने के लिए चूड़िया ही तोड़ दीं। दोनों हाथों में बस एक-एक चूड़ी रहने दी। उसके बाद उस कन्या ने बिना शोर किए धान कूट लिया अत: हमें भी एक चूड़ी की भांति अकेले ही रहना चाहिए और निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए

समुद्र- जैसे समुद्र के पानी की लहर निरंतर गतिशील रहती है, वैसे ही जीवन के उतार-चढ़ाव में हमें भी खुश और गतिशील रहना चाहिए।
 

पिंगला- दत्तात्रेयजी ने पिंगला नाम की वेश्या से यह सबक लिया कि हमें केवल पैसों के लिए नहीं जीना चाहिए। जब वह वेश्या धन की कामना में सो नहीं पाती थी, तब एक दिन उसके मन में वैराग्य जागा और उसे समझ में आया कि असली सुख पैसों में नहीं बल्कि परमात्मा के ध्यान में है, तब कहीं उसे सुख की नींद आई।

मछली- जिस प्रकार मछली किसी कांटे में फंसे मांस के टुकड़े को खाने के लिए चली जाती है और अपने प्राण गंवा देती है, वैसे ही हमें स्वाद को इतना अधिक महत्व नहीं देना चाहिए। हमें ऐसा ही भोजन करना चाहिए, जो स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा हो। 

जल- भगवान दत्तात्रेय ने जल से सीखा कि हमें सदैव पवित्र रहना चाहिए।
 

आकाश- भगवान दत्तात्रेय ने आकाश से सीखा कि हर देश, परिस्थिति तथा काल में लगाव से दूर रहना चाहिए।

आग- दत्तात्रेयजी ने आग से सीखा कि जीवन में कैसे भी हालात हो, हमारा उन हालातों में ढल जाना ही उचित है

अजगर- भगवान दत्तात्रेय ने अजगर से सीखा कि हमें जीवन में संतोषी बनना चाहिए और जो मिल जाए, उसे खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना ही हमारा धर्म होना चाहिए।

पृथ्वी- पृथ्वी से हम सहनशीलता व परोपकार की भावना सीख सकते हैं। कई लोग पृथ्वी पर अनेक प्रकार के आघात करते हैं, उत्पात एवं खनन के कार्य करते हैं, लेकिन पृथ्वी माता हर आघात को परोपकार की भावना से सहन करती है।

वायु- दत्तात्रेय के अनुसार जिस प्रकार कहीं भी अच्छी या बुरी जगह पर जाने के बाद भी वायु का मूल रूप स्वच्छता ही है, उसी प्रकार हमें अच्छे या बुरे लोगों के साथ रहने पर भी अपनी अच्छाइयों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

कुरर पक्षी- जिस प्रकार कुरर पक्षी मांस के टुकड़े को चोंच में दबाए रहता है और जब दूसरे बलवान पक्षी उस मांस के टुकड़े को उससे छीन लेते हैं, तब मांस का टुकड़ा छोड़ने के बाद ही कुरर को शांति मिलती है। उसी तरह हमें कुरर पक्षी से यह सीखना चाहिए कि ज्यादा चीजों को पास में रखने की सोच छोड़ देना चाहिए

हाथी- जैसे कोई हाथी हथिनी के संपर्क में आते ही उसके प्रति आसक्त हो जाता है, अत: हाथी से सीखा जा सकता है कि तपस्वी पुरुष और संन्यासी को स्त्री से बहुत दूर रहना चाहिए।

बालक- जैसे छोटे बच्चे हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न दिखाई देते हैं, वैसे ही हमें भी हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए।

सोमवार, 11 मार्च 2019

आठ प्रकार के श्रोता

श्रोता दो प्रकार के माने गये हैं—प्रवर (उत्तम) तथा अवर (अधम) । प्रवर श्रोताओं के ‘चातक’, हंस’, ‘शुक’ और ‘मीन’ आदि कई भेद हैं। अवर के भी ‘वृक’, ‘भूरुण्ड’, ‘वृष’ और ‘उष्ट्र’ आदि अनेकों भेद बतलाये गये हैं ।









Hindu Nav varsh 2077

Chaitra Shukla pratipada   Hindu Nav varsh     Vikram samvat 2077